ख्वाब देखा या तेरा चेहरा देखा
राज़ नजरों से कोई गहरा देखा
उनकी नजरों को जानता हु मैं
जिन पर जुल्फों का पहरा देखा
मिलते ही नाम बताया उसने
हमने उसको इस तरह देखा
मैंने देखा उसे उसके जाने तक
यारों ने वक्त को ठहरा देखा
Saturday, October 29, 2011
Sunday, October 16, 2011
Wednesday, October 5, 2011
सफ़र
कहाँ ले चली हमें जिंदगी
कहाँ ले चले हमको अपने दीवाने
गुज़रती रही उन राहों पर
जहाँ पर कभी थे अपने ठिकाने
कभी तो थे मौसम घटाओ से नम
कभी तो बहारों पर छाए थे हम
जो गुज़रे कभी ख्वाबों से हम
हकीकत बने जाने कितने फ़साने
कभी साथ अपने साए चले
कभी चलते चलते रात ढले
सफ़र की कोई मंजिल नहीं
बस कुछ नए ढूंढ़ लेते बहाने
कहाँ ले चले हमको अपने दीवाने
गुज़रती रही उन राहों पर
जहाँ पर कभी थे अपने ठिकाने
कभी तो थे मौसम घटाओ से नम
कभी तो बहारों पर छाए थे हम
जो गुज़रे कभी ख्वाबों से हम
हकीकत बने जाने कितने फ़साने
कभी साथ अपने साए चले
कभी चलते चलते रात ढले
सफ़र की कोई मंजिल नहीं
बस कुछ नए ढूंढ़ लेते बहाने
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