Wednesday, December 29, 2010

गत्ते का नेता

मस्तिष्क मे प्रश्‍न प्रकट हुए विकराल से
लक्ष्मी ने माँग लिया धन माँगीलाल से

माँगी का सर चकराया
फीकी पड़ गई सारी काया
झेल न पाया महँगाई का गोला
लक्ष्मी से माँगी बोला

तीस का रोना बाईस को
तनख्वा होगी अट्ठाईस को
अस्थाई मैं शिक्षक हू
सभ्य समाज का रक्षक हू


समाजवाद का आदि हू
मैं आधी आबादी हू
माँग तुम्हारी कैसे मानु
प्याज़ टमाटर मैं क्या जानू


लक्ष्मी झल्लाई और बोली
कोंन भरेगा मेरी झोली

चार दिनो का आटा है
कांदा और बटाटा है
मिर्ची धनिया हींग
और एक किलो टाटा है

तुम माँगी सकते हो माँग
जा पाकड़ो नेता की टांग
भक्त सुदामा याद दिलाओ
और अपनी झोली भर लाओ

आस तुम्ही हो माँगी मेरी
सास तुम्ही हो माँगी मेरी
तुम मुझको सकते हो माँग
नेता को चने पर दोगे टाँग


माँगी तुमसे माँग करूँगी
माँगी मैं ना माँग भरँगी
जाओ माँगी बाहर जाओ
सिंदूर भी अब माँग कर लाओ


माँगी घर से बाहर निकला
नेता को देख हुआ पगला
गुस्से मैं माँगी गुर्र्रया
देख के माँगी नेता थर्राया

सुन बे नेता मैं हू माँगी
मैं शिक्षक ज्ञान का दाता हू
फिर क्यो तेरे राज मे नेता
मैं माँगी माँग के ख़ाता हू

ब्च्चे मेरे भूखे क्यो है
उनके चहेरे सूखे क्यो है
दोनो क्यो इतने निर्बल है
लगते दोनो विपक्षी दल है

ठहर जा नेता बोल के सब कुछ
पोल मैं तेरी खोलूँगा
अब मैं अपने वाकबल से
रस्सी का हर बल खोलूँगा

अब मैं तेरी रस्सी को
धागा धागा कर दूँगा
जला दूँगा रस्सी तेरी
राख तुझी मे भर दूँगा

जितना गुस्सा बाहर निकला
माँगी अंदर उतना पिघला
सोचा सब कुछ जाने दो
पहले चुनाव तो आने दो

माँगी ने माँगी चुनाव की दुआ
फिर आगे यही हुआ
न रस्सी जली न बल गया
गत्ते का नेता बारिश मे गल गया.

पैगाम

आज फिर आयी ज़िंदगी लेकर मेरे नाम का खत,
मेरी साँसे है बहुत तेरे पैगाम फक़त

खत मे लिपटी हुई तेरी खुशबू आई
खत मे थी एक कली मुरझाई
तेरे खत मे मेरा नाम था धुँधला-धुँधला
तेरी आखों से उसे प्यार का आँसू था मिला
प्यार पाते धुधलाते मेरे नाम का खत


खत मे लिखी थी जवानी मेरी
नाम था मेरा पर लिखी कहानी तेरी
उस कहानी मे ना कोई आँसू था ना कोई गम था
ना थी मुरझाई कली कोई ना कोई खत था
उस कहानी मे ना थी साँसे पर ज़िंदगी थी बहुत.

अपनी कहानी

बहुत छोटी सी भूल कर बैठा मैं नादानी मे
इश्क़ मशहूर कर बैठा अपनी बदगुमानी मे

सुना था कुछ तजुर्बों मे समंदर राज़ रखता है
जिसे समझा था मोती घुल गया पानी मे

उनके बाद भी वही होता वो ना होते तो जो होता
कहाँ अपना ज़िक्र होता खुद अपनी कहानी मे