Monday, April 18, 2011

शाम ले आओ तुम

शाम ले आओ तुम जाम ले आयें हम ज़िन्दगी की ये महफ़िल सज जाएगी
चाहे कुछ ना कहो यूँ ही बैठी रहो वक्त की ये नदी यूँ ही थम जाएगी

जब मुखातिब रहो कुछ मुनासिब रहो मुस्कराहट से सोचो क्या होगा बयां
तुम छुपाती रहो दिल के जज्बात को पर तुम्हारी हसी सब ये कह जाएगी

दिल के जज्बात को इन से कर दो बयां ये फूल और परिंदे सभी है गवाह
लोट कर अपने घर जो परिंदे गए शाम भी अपने घर को चली जाएगी

2 comments:

  1. Vakta hai kam yahan, banane ko aashiyan, in baharon ki khushiyan na rahengi sada

    Tum na kaho sahi, ik na ik din magar, bahati nadiya ye saagar hi me mil jayegi

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  2. shaam, naam har aayam khathm hone ko bana hai yahan
    jee len zindagi is pal ke phir umr dhal jayegi
    Rohan

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