Wednesday, October 5, 2011

सफ़र

कहाँ ले चली हमें जिंदगी
कहाँ ले चले हमको अपने दीवाने
गुज़रती रही उन राहों पर
जहाँ पर कभी थे अपने ठिकाने

कभी तो थे मौसम घटाओ से नम
कभी तो बहारों पर छाए थे हम
जो गुज़रे कभी ख्वाबों से हम
हकीकत बने जाने कितने फ़साने

कभी साथ अपने साए चले
कभी चलते चलते रात ढले
सफ़र की कोई मंजिल नहीं
बस कुछ नए ढूंढ़ लेते बहाने

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